दिल के टुकड़ों को बग़ल-गीर लिए फिरता हूँ
कुछ इलाज इस का भी ऐ शीशा-गिराँ है कि नहीं
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आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
जिस दम वो सनम सवार होवे
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
इश्क़ से तो नहीं हूँ मैं वाक़िफ़
मै-कशाँ रूह हमारी भी कभी शाद करो
दीं शैख़ ओ बरहमन ने किया यार फ़रामोश
आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें
मस्त-ए-सहर ओ तौबा-कुनाँ शाम का हूँ मैं
'सौदा' ख़ुदा के वास्ते कर क़िस्सा मुख़्तसर