जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
ये याद रहे हम को बहुत याद करोगे
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गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
या रब कहीं से गर्मी-ए-बाज़ार भेज दे
काम आई कोहकन की मशक़्क़त न इश्क़ में
गर यार के सामने मैं रोया तो क्या
ये रंजिश में हम को है बे-इख़्तियारी
कीजिए न असीरी में अगर ज़ब्त नफ़स को
तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात बे-तरह
क्या करूँगा ले के वाइज़ हाथ से हूरों के जाम
न जिया तेरी चश्म का मारा
गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो
मौज-ए-नसीम आज है आलूदा गर्द से