'सौदा' की जो बालीं पे गया शोर-ए-क़यामत
ख़ुद्दाम-ए-अदब बोले अभी आँख लगी है
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जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
ले दीदा-ए-तर जिधर गए हम
अपने का है गुनाह बेगाने ने क्या किया
वे सूरतें इलाही किस मुल्क बस्तियाँ हैं
गर हो शराब ओ ख़ल्वत ओ महबूब-ए-ख़ूब-रू
यारो वो शर्म से जो न बोला तो क्या हुआ
हर संग में शरार है तेरे ज़ुहूर का
करता हूँ तेरे ज़ुल्म से हर बार अल-ग़ियास
गर तुझ में है वफ़ा तो जफ़ाकार कौन है
तिरा ख़त आने से दिल को मेरे आराम क्या होगा