क्या ज़िद है मिरे साथ ख़ुदा जाने वगरना
काफ़ी है तसल्ली को मिरी एक नज़र भी
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बुलबुल ने जिसे जा के गुलिस्तान में देखा
कोताह न उम्र-ए-मय-परस्ती कीजे
मगर वो दीद को आया था बाग़ में गुल के
कहते हैं लोग यार का अबरू फड़क गया
गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
दिलदार उस को ख़्वाह दिल-आज़ार कुछ कहो
'सौदा' शेर में है बड़ाई तुझ को
जिस रोज़ किसी और पे बेदाद करोगे
किसे ताक़त है शरह-ए-शौक़ उस मज्लिस में करने की
'सौदा' तिरी फ़रियाद से आँखों में कटी रात
गर कीजिए इंसाफ़ तो की ज़ोर वफ़ा मैं