अन्दर थी जितनी आग वो ठंडी न हो सकी
पानी था सिर्फ़ घास के ऊपर पड़ा हुआ
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मिरे ही हर्फ़ दिखाते थे मेरी शक्ल मुझे
उस आइने में देखना हैरत भी आएगी
ये तिरे अशआर तेरी मानवी औलाद हैं
प्यार करने भी न पाया था कि रुस्वाई मिली
सज़ा तो मिलना थी मुझ को बरहना लफ़्ज़ों की
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
मिला तो हादिसा कुछ ऐसा दिल ख़राश हुआ
पढ़ते पढ़ते थक गए सब लोग तहरीरें मिरी
बे-ख़बर दुनिया को रहने दो ख़बर करते हो क्यूँ
प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ
उस ने भी कई रोज़ से ख़्वाहिश नहीं ओढ़ी