जब घर की आग बुझी तो कुछ सामान बचा था जलने से
सो वो भी उन के हाथ लगा जो आग बुझाने आए थे
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अपनी मिट्टी ही पे चलने का सलीक़ा सीखो
हाथ फैलाऊँ मैं ईसा-नफ़सों के आगे
जुनूँ को होश कहाँ एहतिमाम-ए-ग़ारत का
झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर
अब हम भी सोचते हैं कि बाज़ार गर्म है
सफ़र पे निकले हैं हम पूरे एहतिमाम के साथ
जिस अंजुमन में देखो बेगाने रह गए हैं
आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब
बिल-एहतिमाम ज़ुल्म की तज्दीद की गई
ये निगाह-ए-शर्म झुकी झुकी ये जबीन-ए-नाज़ धुआँ धुआँ
हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं
यूँ सर-ए-राह मुलाक़ात हुई है अक्सर