सफ़र पे निकले हैं हम पूरे एहतिमाम के साथ
हम अपने घर से कफ़न साथ ले के आए हैं
Mir Taqi Mir
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Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
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Jaun Eliya
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कुछ ऐसे ज़ख़्म भी दर-पर्दा हम ने खाए हैं
मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ
जब घर की आग बुझी तो कुछ सामान बचा था जलने से
माना कि ज़िंदगी से हमें कुछ मिला भी है
ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं
वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा
हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं
आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब
जिस में न कोई रंग न आहंग न ख़ुशबू
अब हम भी सोचते हैं कि बाज़ार गर्म है
बे-नियाज़ाना गुज़र जाए गुज़रने वाला