अब हम भी सोचते हैं कि बाज़ार गर्म है
अपना ज़मीर बेच के दुनिया ख़रीद लें
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ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं
हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते
जब घर की आग बुझी तो कुछ सामान बचा था जलने से
हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं
ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब
झुक कर सलाम करने में क्या हर्ज है मगर
बे-नियाज़ाना गुज़र जाए गुज़रने वाला
माना कि ज़िंदगी से हमें कुछ मिला भी है
बारहा उन से न मिलने की क़सम खाता हूँ मैं