जुनूँ को होश कहाँ एहतिमाम-ए-ग़ारत का
फ़साद जो भी जहाँ में हुआ ख़िरद से हुआ
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1797) Peoples Rate This
सब समझते हैं कि हम किस कारवाँ के लोग हैं
ऐ अहल-ए-वफ़ा दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
सफ़र पे निकले हैं हम पूरे एहतिमाम के साथ
ज़माना देखा है हम ने हमारी क़द्र करो
इस जश्न-ए-चराग़ाँ से तो बेहतर थे अँधेरे
ज़हर के घूँट भी हँस हँस के पिए जाते हैं
बस हो चुका हुज़ूर ये पर्दे हटाइए
रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं
जब घर की आग बुझी तो कुछ सामान बचा था जलने से
मिरे जुर्म-ए-वफ़ा का फ़ैसला कुछ इस तरह होगा
हाथ फैलाऊँ मैं ईसा-नफ़सों के आगे
अपने मरकज़ से अगर दूर निकल जाओगे