आग Poetry (page 20)

टुक तू महमिल का निशाँ दे जल्द ऐ सूरत ज़रा

रज़ा अज़ीमाबादी

टुक बैठ तू ऐ शोख़-ए-दिल-आराम बग़ल में

रज़ा अज़ीमाबादी

फ़रोग़-ए-गुल से अलग बर्क़-ए-आशियाँ से अलग

रविश सिद्दीक़ी

न बातें कीं न तस्कीं दी न पहलू में ज़रा ठहरे

रौनक़ टोंकवी

रौशनी होने लगी है मुझ में

रउफ़ रज़ा

उमूद हो के उफ़ुक़ में बदल रहे हैं सुतून

रउफ़ ख़लिश

साया सा इक ख़याल की पहनाइयों में था

रासिख़ इरफ़ानी

रात आख़िर हो सितम-पेशों पे ऐसा भी नहीं

राशिद तराज़

जिसे उड़ान के बदले थकान देता है

राशिद राही

दर्द की हद से गुज़रना तो अभी बाक़ी है

राशिद कामिल

मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

राशिद फ़ज़ली

मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते

राशिद आज़र

चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा

रशीदुज़्ज़फ़र

उठ कर तिरे दर से कहीं जाने के नहीं हम

रशीद रामपुरी

सवाद-ए-शाम पे सूरज उतरने वाला है

रशीद निसार

नहीं था ज़ख़्म तो आँसू कोई सजा लेता

रशीद निसार

बढ़ा ये शक कि ग़ैरों कि तन में आग लगी

रशीद लखनवी

दिलों में ख़ौफ़ के चूल्हे की आग ठंडी हो

राना आमिर लियाक़त

सुनते हैं कि मिल जाती है हर चीज़ दुआ से

राना अकबराबादी

रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया

राम रियाज़

न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं

राम रियाज़

किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया

राम रियाज़

किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया

राम रियाज़

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

राम कृष्ण मुज़्तर

क़फ़स पे बर्क़ गिरे और चमन को आग लगे

राम अवतार गुप्ता मुज़्तर

है वही मंज़र-ए-ख़ूँ-रंग जहाँ तक देखूँ

रख़शां हाशमी

आ जाना

राजेन्द्र नाथ रहबर

क्या क्या सवाल मेरी नज़र पूछती रही

राजेन्द्र नाथ रहबर

ये सास है कि शेर छुपा है नक़ाब में

राजा मेहदी अली ख़ाँ

आख़िरी गाली

राजा मेहदी अली ख़ाँ

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