आग Poetry (page 18)

आँख तुम्हारी मस्त भी है और मस्ती का पैमाना भी

साग़र निज़ामी

होली

साग़र ख़य्यामी

ये हादसा है बता दे कोई ज़माने को

साग़र ख़य्यामी

उस के जज़्बात से यूँ खेल रहा हूँ 'साग़र'

साग़र आज़मी

कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले हो

साग़र आज़मी

प्यास सदियों की है लम्हों में बुझाना चाहे

साग़र आज़मी

फूलों से बदन उन के काँटे हैं ज़बानों में

साग़र आज़मी

शम-ए-उम्मीद जला बैठे थे

सफ़िया शमीम

मुकालिमा

सफ़दर सिद्दीक़ रज़ी

कहानियाँ

सईदुद्दीन

एक दरख़्त की दहशत

सईदुद्दीन

इतना तो हुआ ऐ दिल इक शख़्स के जाने से

सईद राही

इब्तिदा मुझ में इंतिहा मुझ में

सईद नक़वी

ये हादसा भी तो कुछ कम न था सबा के लिए

सईद अहमद अख़्तर

ख़ुश्क पत्तों में किसी याद का शोला है 'सईद'

सईद अहमद

जब समाअत तिरी आवाज़ तलक जाती है

सईद अहमद

दुरून-ए-चश्म हर इक ख़्वाब मर रहा है बस

सादिया सफ़दर सादी

इस एहतिमाम से परवाने पेशतर न जले

सादिक़ नसीम

महक रहा है बदन सारा कैसी ख़ुशबू है

सादिक़ इंदौरी

एक वसिय्यत

सादिक़

बचपन की आँखें

सादिक़

और कुछ चारा नहीं

सादिक़

चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं

सदा अम्बालवी

वो क्यूँ न रूठता मैं ने भी तो ख़ता की थी

साबिर ज़फ़र

ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर

साबिर वसीम

ये महर ओ मह बे-चराग़ ऐसे कि राख बन कर बिखर रहे हैं

साबिर वसीम

खिले हुए हैं फूल सितारे दरिया के उस पार

साबिर वसीम

करता है कोई और भी गिर्या मिरे दिल में

साबिर वसीम

इक आग देखता था और जल रहा था मैं

साबिर वसीम

दुरुस्त है कि ये दिन राएगाँ नहीं गुज़रे

सबिहा सबा, न्यूयार्क

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