दिल में रख ज़ख़्म-ए-नवा राह में काम आएगा
दश्त-ए-बे-सम्त में इक हू का मक़ाम आएगा
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तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था
चल पड़े हम दश्त-ए-बे-साया भी जंगल हो गया
फ़स्ल-ए-गुल को ज़िद है ज़ख़्म दिल का हरा कैसे हो
सात रंगों से बनी है याद ताज़ा
जारी है कब से मा'रका ये जिस्म-ओ-जाँ में सर्द सा
शो'ले से चटकते हैं हर साँस में ख़ुशबू के
बे-चराग़ाँ बस्तियों को ज़िंदगी दे
टूटे तख़्ते पर समुंदर पार करने आए थे
शब के तारीक समुंदर से गुज़र आया हूँ