अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
महव-ए-हैरत हूँ कि इतना भी मुझे याद नहीं
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हवाएँ रोक न पाईं भँवर डुबो न सके
जी में आता है कि 'शौकत' किसी चिंगारी को
शरीक-ए-दर्द नहीं जब कोई तो ऐ 'शौकत'
उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर
देता रहा फ़रेब-ए-मुसलसल कोई मगर
एक वहशत है रहगुज़ारों में
ए'तिबार
हाए उस मिन्नत-कश-ए-वहम-ओ-गुमाँ की जुस्तुजू
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
नज़र-नवाज़ नज़ारों की याद आती है
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे