हवाएँ रोक न पाईं भँवर डुबो न सके
वो एक नाव जो अज़्म-ए-सफ़र के बा'द चली
Faiz Ahmad Faiz
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Habib Jalib
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Mir Taqi Mir
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Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
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ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो
हसरत
हाए उस मिन्नत-कश-ए-वहम-ओ-गुमाँ की जुस्तुजू
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
याद
शुऊ'र-ए-कैफ़-ओ-ख़ुशी है ज़रा ठहर जाओ
हौसले की कमी से डरता हूँ
मुझ को जहाँ में कोई दिल-आरा नहीं मिला
उस की हँसी तुम क्या समझो
होश वाले तो उलझते ही रहे
कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ