कुछ तो फ़ितरत से मिली दानाई
कुछ मयस्सर हुई नादानों से
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हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही
जी में आता है कि 'शौकत' किसी चिंगारी को
हसरत
ए'तिबार
अगर तुम जल भी जाते तो न होता ख़त्म अफ़्साना
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
आरज़ू
अधूरा हो के हूँ कितना मुकम्मल
उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
रात तारों से जब सँवरती है
जुरअत हो तो दुनिया से बग़ावत कर लो