अपने पराए थक गए कह कर हर कोशिश बेकार रही
वक़्त की बात समझ में आई वक़्त ही के समझाने से
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
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आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
हँसते हँसते बहे हैं आँसू भी
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
जुरअत हो तो दुनिया से बग़ावत कर लो
आरज़ू
शुऊ'र-ए-कैफ़-ओ-ख़ुशी है ज़रा ठहर जाओ
किसी की बाज़ी कैसी घात
हम-सफ़र
तुम ही अब वो नहीं रहे वर्ना
मायूसी