हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
कि तिश्नगी थी बरहना तिरी अदाओं तक
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
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मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
ये कैसी बे-क़रारी सुनने वालों के दिलों में है
यास
बर्क़ की शो'ला-मिज़ाजी है मुसल्लम लेकिन
एहसास की लज़्ज़त के क़रीब आ जाओ
उस की हँसी तुम क्या समझो
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
औरत
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
अंजाम-ए-विसाल
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार