मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
नज़्र-ए-साहिल हुए दरिया के शनावर कितने
Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Javed Akhtar
Habib Jalib
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इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
हाए उस मिन्नत-कश-ए-वहम-ओ-गुमाँ की जुस्तुजू
फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
जी में आता है कि 'शौकत' किसी चिंगारी को
उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
उस की हँसी तुम क्या समझो
ए'तिबार
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे
एक वहशत है रहगुज़ारों में
औरत
उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आया है