उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आया हे
छूटा हुआ आँचल कहीं हाथ आया हे
बिखरी हुइ ख़ुश-बू कभी सिमटी है कहीं
गुज़रा हुआ इक पल कहीं हाथ आया है
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उड़ता हुआ बादल कहीं हाथ आया है
हँसते हँसते बहे हैं आँसू भी
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
वो आँखें जो अब अजनबी हो गई हैं
'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
ख़ुद वो करते हैं जिसे अहद-ए-वफ़ा से ताबीर
मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
हौसले की कमी से डरता हूँ
औरत