'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
अपनी निगाह में जो कभी आसमाँ रहे
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क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे
मौज-ए-तूफ़ाँ से निकल कर भी सलामत न रहे
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
बर्क़ की शो'ला-मिज़ाजी है मुसल्लम लेकिन
उस के नाम
शुऊ'र-ए-कैफ़-ओ-ख़ुशी है ज़रा ठहर जाओ
मायूसी
शरीक-ए-दर्द नहीं जब कोई तो ऐ 'शौकत'
अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
ख़ुद वो करते हैं जिसे अहद-ए-वफ़ा से ताबीर