क्या बढ़ेगा वो तसव्वुर की हदों से आगे
सुब्ह की देख के याद आए जिसे शाम की बात
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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Habib Jalib
Gulzar
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Javed Akhtar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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बर्क़ की शो'ला-मिज़ाजी है मुसल्लम लेकिन
यास
आईने को ख़ुद तोड़ रहा हो जैसे
नज़र-नवाज़ नज़ारों की याद आती है
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
औरत
ख़्वाबों के तिलिस्मात से हम गुज़रे हैं
आरज़ू
हदूद-ए-जिस्म से आगे बढ़े तो ये देखा
ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे
हर बुरे वक़्त में काम आया था