ख़ुद वो करते हैं जिसे अहद-ए-वफ़ा से ताबीर
सच तो ये है कि वो धोका भी मुझे याद नहीं
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फिर कोई जश्न मनाओ कि हँसी आ जाए
अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं
उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
उस की हँसी तुम क्या समझो
हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम
जब मस्लहत-ए-वक़्त से गर्दन को झुका कर
अंजाम-ए-विसाल
औरत
हसरत
ज़िंदगी से कोई मानूस तो हो ले पहले
इस फ़ैसले पे लुट गई दुनिया-ए-ए'तिबार
हवाएँ रोक न पाईं भँवर डुबो न सके