वक़्त की धूप तेज़ होती है
हम-सफ़र हो तो राह कट जाए
सहल हो जाए फिर तो जोहद-ए-हयात
दिल न सहमे ख़याल बट जाए
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
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हर बुरे वक़्त में काम आया था
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
यादों की मैं बारात लिए आया हूँ
हाए उस मिन्नत-कश-ए-वहम-ओ-गुमाँ की जुस्तुजू
रात इक नादार का घर जल गया था और बस
मायूसी
ए'तिबार
दिल पर असर-ए-ख़्वाब है हल्का हल्का
ग़म की अँधेरी राहों में तो तुम भी नहीं काम आओ हो
रात तारों से जब सँवरती है
अहद-ए-आग़ाज़-ए-तमन्ना भी मुझे याद नहीं