वो मिरा होगा ये सोचा ही नहीं
ख़्वाब ऐसा कोई देखा ही नहीं
यूँ तो हर हादसा भूला लेकिन
उस का मिलना कभी भूला ही नहीं
मेरी रातों के सियह आँगन में
चाँद कोई कभी चमका ही नहीं
ये तअल्लुक़ भी रहे या न रहे
दिल-क़लंदर का ठिकाना ही नहीं
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तुम मिरे पास रहो जिस्म की गरमी बख़्शो
वो दश्त-ए-तीरगी है कि कोई सदा न दे
था आईने के सामने चेहरा खुला हुआ
एक जग बीत गया झूम के आए बादल
जब सफ़र को मैं ने थामा था ये अंधा रास्ता
उतर के धूप जब आएगी शब के ज़ीने से
कितने जुग बीत गए फिर भी न भूला जाए
जागते में रात मुझ को ख़्वाब दिखलाया गया
शोला-ए-इश्क़ में जो दिल को तपाँ रखते हैं
हम दोज़ख़-ए-एहसास में जलते ही रहेंगे
किस तरह ज़िंदा रहेंगे हम तुम्हारे शहर में