आंगन Poetry (page 5)

अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा

सलीम कौसर

ख़मोशी के हैं आँगन और सन्नाटे की दीवारें

सलीम अहमद

मशरिक़ हार गया

सलीम अहमद

मुझे इन आते जाते मौसमों से डर नहीं लगता

सलीम अहमद

दुख दे या रुस्वाई दे

सलीम अहमद

सरहद-ए-फ़ना तक भी तीरगी नहीं आई

सलाम मछली शहरी

फागुन

सलाहुद्दीन परवेज़

शजर के भीतर छाती चिड़िया

सलाहुद्दीन महमूद

तस्वीरें

सज्जाद ज़हीर

ये कैसा हादसा गुज़रा ये कैसा सानेहा बीता

सज्जाद शम्सी

दुआओं में असर बाक़ी न आहों में असर बाक़ी

सज्जाद शम्सी

वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह

सज्जाद बाक़र रिज़वी

घिरते बादल में तन्हाई कैसी लगती है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

भटकी है उजालों में नज़र शाम से पहले

सज्जाद बाबर

वो पल ये घड़ी

साजिदा ज़ैदी

दिल के आँगन में जो दीवार उठा ली जाए

साजिद प्रेमी

तारे सारे रक़्स करेंगे चाँद ज़मीं पर उतरेगा

साजिद हाश्मी

तू ने पूछा है मिरे दोस्त!

साइमा असमा

कोई इम्काँ तो न था उस का मगर चाहता था

साइमा असमा

एक वाक़िआ

साहिर लुधियानवी

ऐ शरीफ़ इंसानो

साहिर लुधियानवी

टालने से वक़्त क्या टलता रहा

साहिर होशियारपुरी

पहले होता था बहुत अब कभी होता ही नहीं

साहिबा शहरयार

हिसाब-ए-शब

सहर अंसारी

पस-ए-रौशनी

साग़र ख़य्यामी

देवता मेरे आँगन में उतरेंगे कब ज़िंदगी भर यही सोचता रह गया

साग़र आज़मी

शहर के फ़ुट-पाथ पर कुछ चुभते मंज़र देखना

सईद अख़्तर

आग थी ऐसी कि अरमाँ जल गए

सदफ़ जाफ़री

काम इतनी ही फ़क़त राहगुज़र आएगी

साबिर ज़फ़र

वो धूप वो गलियाँ वही उलझन नज़र आए

साबिर वसीम

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