देवता मेरे आँगन में उतरेंगे कब ज़िंदगी भर यही सोचता रह गया
मेरे बच्चों ने तो चाँद को छू लिया और मैं चाँद को पूजता रह गया
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ऐसी नहीं है बात कि क़द अपने घट गए
बैठे थे जब तो सारे परिंदे थे साथ साथ
प्यास सदियों की है लम्हों में बुझाना चाहे
मुझ में और तुझ में है ये फ़र्क़ तो अब भी क़ाइम
इतना नाराज़ हो क्यूँ उस ने जो पत्थर फेंका
तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ
रात के अँधेरों को रौशनी वो क्या देगा
ये जो दीवार पे कुछ नक़्श हैं धुँदले धुँदले
धूप में ग़म की मिरे साथ जो आया होगा
शोहरत की फ़ज़ाओं में इतना न उड़ो 'साग़र'
सामान तो गया था मगर घर भी ले गया