शोहरत की फ़ज़ाओं में इतना न उड़ो 'साग़र'
परवाज़ न खो जाए इन ऊँची उड़ानों में
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
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Gulzar
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
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गुलशन को बहारों ने इस तरह नवाज़ा है
धूप में ग़म की मिरे साथ जो आया होगा
फूलों से बदन उन के काँटे हैं ज़बानों में
वो आज भी क़रीब से कुछ कह के हट गए
ऐसी नहीं है बात कि क़द अपने घट गए
कश्मीर की वादी में बे-पर्दा जो निकले हो
शाम ढले ये सोच के बैठे हम अपनी तस्वीर के पास
तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ
बैठे थे जब तो सारे परिंदे थे साथ साथ
प्यास सदियों की है लम्हों में बुझाना चाहे
रात के अँधेरों को रौशनी वो क्या देगा