आंगन Poetry (page 7)

मय मिले या न मिले रस्म निभा ली जाए

राही शहाबी

तआरुफ़

राही मासूम रज़ा

दिल के पर्दे पे चेहरे उभरते रहे मुस्कुराते रहे और हम सो गए

इरफ़ान सत्तार

नक़ाब चेहरे से उस के कभी सरकता था

इरफ़ान अहमद

है दर्द के इंतिसाब सा कुछ

इरफ़ान अहमद

कितनी दूर से चलते चलते ख़्वाब-नगर तक आई हूँ

इरम ज़ेहरा

ख़ुश्क उस की ज़ात का सातों समुंदर हो गया

इक़बाल साजिद

हर घड़ी का साथ दुख देता है जान-ए-मन मुझे

इक़बाल साजिद

उस ने दिल से निकाल रक्खा है

इक़बाल पयाम

उर्दू

इक़बाल अशहर

कोई तो है जो आहों में असर आने नहीं देता

इमरान-उल-हक़ चौहान

सूदी बेगम

इमरान शमशाद

ये बस्ती जानी-पहचानी बहुत है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अगर वो मिल के बिछड़ने का हौसला रखता

इफ़्फ़त ज़र्रीं

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

झुलसी सी इक बस्ती में

इब्न-ए-इंशा

लोगों ने आकाश से ऊँचा जा कर तमग़े पाए

हुसैन माजिद

तबीअत इन दिनों औहाम की उन मंज़िलों पर है

हुमैरा रहमान

वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए

हुमैरा राहत

अपने घरों के कर दिए आँगन लहू लहू

हीरानंद सोज़

पहले तो ख़्वाब ज़ेहन में तश्कील हो गया

हीरानंद सोज़

उन के सब झूट मो'तबर ठहरे

हिना हैदर

सर-ए-दरबार ख़ामोशी तह-ए-दरबार ख़ुशियाँ हैं

हस्सान अहमद आवान

बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता

हाशिम रज़ा जलालपुरी

गई रुतों को भी याद रखना नई रुतों के भी बाब पढ़ना

हसन रिज़वी

आँख की राह से बुझते हुए लम्हे उतरे

हसन निज़ामी

आरज़ू थी कि तिरा दहर भी शोहरा होवे

हसन नईम

दिल की तरफ़ निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रहा करे

हसन अख्तर जलील

ख़्वाब अपने मिरी आँखों के हवाले कर के

हसन अब्बासी

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