अपने घरों के कर दिए आँगन लहू लहू
हर शख़्स मेरे शहर का क़ाबील हो गया
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कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं
कोई भी शख़्स जो वहम-ओ-गुमाँ की ज़द में रहा
जिसे मिलें वही तन्हा दिखाई देता है
अजीब हाल था अहद-ए-शबाब में दिल का
पहले तो ख़्वाब ज़ेहन में तश्कील हो गया
वो मेरे शीशा-ए-दिल दिल पर ख़राश छोड़ गया