मुकाफ़ात
थकी थकी मुज़्महिल हवा के नहीफ़ झोंके
उजाड़ आँगन में आ के कुछ देर रुक गए थे
दबी ज़बाँ से सुना रहे थे
वो पेड़ जिस के सुनहरे पत्तों रुपहली शाख़ों पे
अम्बरीं फूल गौहरीं फल सजे हुए थे
झुलस चुका है
वहाँ के क़ुर्ब-ओ-जवार में कुछ
रिवायतें और अजीब क़िस्से भी
उस से मंसूब हो गए हैं
मगर किसी को ख़ुद अपनी तारीक रूह का
जैसे कोई एहसास ही नहीं है
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