आईना जब भी रू-ब-रू आया
अपना चेहरा छुपा लिया हम ने
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टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह
पाबंदी-ए-हुदूद से बेगाना चाहिए
एक जल्वा ब-सद अंदाज़-ए-नज़र देख लिया
आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है
अभी हैं क़ुर्ब के कुछ और मरहले बाक़ी
शाहों की बंदगी में सर भी नहीं झुकाया
हर इक दाग़-ए-दिल शम्अ' साँ देखता हूँ
सब ग़म कहें जिसे कि तमन्ना कहें जिसे
छोटी पड़ती है अना की चादर
बंद-ए-ग़म मुश्किल से मुश्किल-तर खुला