दश्त Poetry (page 18)

उड़ाते आए हैं आप अपने ख़्वाब-ज़ार की ख़ाक

रहमान हफ़ीज़

पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई

राही कुरैशी

लहू आँखों में रौशन है ये मंज़र देखना अब के

राही कुरैशी

अहद-ए-गुम-गश्ता की निशानी हूँ

राही कुरैशी

तल्ख़-ओ-तुर्श

राही मासूम रज़ा

चाँद और चकोर

राही मासूम रज़ा

मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे

राही मासूम रज़ा

इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई

राही मासूम रज़ा

तुम अपने हुस्न पे ग़ज़लें पढ़ा करो बैठे

राहील फ़ारूक़

पाबंद-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ही रहे गो दर्द-ए-दहिंदाँ और सही

इरफ़ान अहमद मीर

ख़ंदगी ख़ुश लब तबस्सुम मिस्ल-ए-अरमाँ हो गए

इरफ़ान अहमद मीर

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

कहाँ ताक़त ये रूसी को कहाँ हिम्मत ये जर्मन को

इक़बाल सुहैल

प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर

इक़बाल साजिद

रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला

इक़बाल साजिद

कटते ही संग-ए-लफ़्ज़ गिरानी निकल पड़े

इक़बाल साजिद

जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर

इक़बाल साजिद

सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैं

इक़बाल कौसर

'इक़बाल' यूँही कब तक हम क़ैद-ए-अना काटें

इक़बाल कौसर

अभी मिरा आफ़्ताब उफ़ुक़ की हुदूद से आश्ना नहीं है

इक़बाल कौसर

ज़रा सी बात से मंज़र बदल भी सकता था

इक़बाल अंजुम

ज़मीं से उट्ठी है या चर्ख़ पर से उतरी है

इंशा अल्लाह ख़ान

सद-बर्ग गह दिखाई है गह अर्ग़वाँ बसंत

इंशा अल्लाह ख़ान

मल ख़ून-ए-जिगर मेरा हाथों से हिना समझे

इंशा अल्लाह ख़ान

दिल-ए-सितम-ज़दा बेताबियों ने लूट लिया

इंशा अल्लाह ख़ान

ख़ुदा से कलाम

इंजिला हमेश

ले-बाई एरिया

इंजील सहीफ़ा

टूटा फूटा सही एहसास-ए-अना है मुझ में

इंद्र सरूप श्रीवास्तवा

कभी लौट आया मैं दश्त से तो ये शहर भी

इनाम नदीम

कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने

इनाम नदीम

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