दश्त Poetry (page 16)

ख़ुदी मेरा पता देती है अब भी

सईद आरिफ़ी

पहले वो क़ैद-ए-मर्ग से मुझ को रिहा करे

सईद अख़्तर

चिता में बैठी ख़्वाहिश

सईद अहमद

होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया

सईद अहमद

हैरत-ए-पैहम हुए ख़्वाब से मेहमाँ तिरे

सईद अहमद

वो जिस का रंग सलोना है बादलों की तरह

सादिक़ नसीम

'बेदिल' का तख़य्युल हूँ न ग़ालिब की नवा हूँ

सादिक़ नसीम

वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है

साबिर ज़फ़र

मिसाल-ए-संग पड़ा कब तक इंतिज़ार करूँ

साबिर ज़फ़र

आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो

साबिर

दुरुस्त है कि ये दिन राएगाँ नहीं गुज़रे

सबिहा सबा, न्यूयार्क

ब-ज़ाहिर रौनक़ों में बज़्म-आराई में जीते हैं

सबिहा सबा, न्यूयार्क

नाव काग़ज़ की सही कुछ तो नज़र से गुज़रे

सादुल्लाह कलीम

बस लहू की बूँद थी एहसास में

रियाज़ लतीफ़

दवाम के दयार में

रियाज़ लतीफ़

ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ

रियाज़ लतीफ़

किसी बे-घर जहाँ का राज़ होना चाहिए था

रियाज़ लतीफ़

इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद

रियाज़ ख़ैराबादी

ये गवारा कि मिरा दस्त-ए-तमन्ना बाँधे

रियाज़ ख़ैराबादी

तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे

रियाज़ ख़ैराबादी

पाया जो तुझे तो खो गए हम

रियाज़ ख़ैराबादी

घर को अब दश्त-ए-कर्बला लिक्खूँ

रिफ़अत सरोश

मासूम ख़्वाहिशों की पशीमानियों में था

रियाज़ मजीद

उम्र-भर इश्क़ किसी तौर न कम हो आमीन

रहमान फ़ारिस

ख़ुद-निगर थे और महव-ए-दीद-ए-हुस्न-ए-यार थे

रज़ी मुजतबा

वो शाख़-ए-गुल की तरह मौसम-ए-तरब की तरह

राज़ी अख्तर शौक़

ऐ सुब्ह-ए-उमीद देर क्या है

राज़ी अख्तर शौक़

महकती आँखों में सोचा था ख़्वाब उतरेंगे

रज़ा मौरान्वी

मा'मूरा-ए-अफ़्क़ार में इक हश्र बपा है

रज़ा हमदानी

रंग पर जब वो बज़्म-ए-नाज़ आई

रविश सिद्दीक़ी

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