नाव काग़ज़ की सही कुछ तो नज़र से गुज़रे

नाव काग़ज़ की सही कुछ तो नज़र से गुज़रे

उस से पहले कि ये पानी मिरे सर से गुज़रे

फिर समाअत को अता कर जरस-ए-गुल की सदा

क़ाफ़िला फिर कोई इस राहगुज़र से गुज़रे

कोई दस्तक न सदा कोई तमन्ना न तलब

हम कि दरवेश थे यूँ भी तिरे दर से गुज़रे

ग़ैरत-ए-इश्क़ तो कहती है कि अब आँख न खोल

इस के ब'अद अब न कोई और इधर से गुज़रे

मैं तो चाहूँ वो सर-ए-दश्त ठहर ही जाए

पर वो सावन की घटा जैसा है बरसे गुज़रे

हब्स की रुत में कोई ताज़ा हवा का झोंका

बाद-ओ-बाराँ के ख़ुदा मेरे भी घर से गुज़रे

मुझ को महफ़ूज़ रखा है मिरे छोटे क़द ने

जितने पत्थर इधर आए मिरे सर से गुज़रे

(462) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Saadullah Kaleem. is written by Saadullah Kaleem. Complete Poem in Hindi by Saadullah Kaleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.