दश्त Poetry (page 17)

ख़ल्वती-ए-ख़याल को होश में कोई लाए क्यूँ

रविश सिद्दीक़ी

दौर-ए-सबूही शोला-ए-मीना रक़्साँ छाँव में तारों की

रविश सिद्दीक़ी

चला है ले के मुझे ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा

रविश सिद्दीक़ी

लाव-लश्कर जाह-ओ-हशमत है यहाँ

रसूल साक़ी

मैं दश्त-ए-शेर में यूँ राएगाँ तो होता रहा

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

मुंजमिद आख़िर है क्यूँ ता-हद्द-ए-मंज़र फैल जा

राशिद अनवर राशिद

क्या कोई याद तिरे दिल को दुखाती है हवा

राशिद अनवर राशिद

दस्त-ए-इम्काँ में कोई फूल खिलाया जाए

राशिद अनवर राशिद

इक ख़याल-अफ़रोज़ मौज आई तो थी

राशिदा माहीन मलिक

लाख चाहा मैं ने पर्दा सामने आया नहीं

रशीद उस्मानी

यूँ भी इक बज़्म-ए-सदा हम ने सजाई पहरों

रशीद क़ैसरानी

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

जो हवा है सूरत-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ तेज़ है

रशीद लखनवी

'मीर'-जी से अगर इरादत है

रसा चुग़ताई

परिंदे होते अगर हम हमारे पर होते

रऊफ़ अमीर

अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा

राना आमिर लियाक़त

अब ऐसे दश्त-मिज़ाजों से दूर घर लिया जाए

राना आमिर लियाक़त

खींच लाई है तिरे दश्त की वहशत वर्ना

रम्ज़ी असीम

ज़ख़्म इस ज़ख़्म पे तहरीर किया जाएगा

रम्ज़ी असीम

साथ रोने न सही गीत सुनाने आते

रम्ज़ी असीम

नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं

रम्ज़ी असीम

हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे

रम्ज़ी असीम

ज़र्रा इंसान कभी दश्त-नगर लगता है

राम रियाज़

क्या ग़ज़ब है कि मुलाक़ात का इम्काँ भी नहीं

राम कृष्ण मुज़्तर

दिल-ओ-नज़र में न पैदा हुई शकेबाई

राम कृष्ण मुज़्तर

दमक रहा था बहुत यूँ तो पैरहन उस का

राजेन्द्र मनचंदा बानी

सुना है ये जहाँ अच्छा था पहले

राजेश रेड्डी

क़ुरआँ किताब है रुख़-ए-जानाँ के सामने

रजब अली बेग सुरूर

फिर उन की निगाहों के पयाम आए हुए हैं

राज कुमार सूरी नदीम

हिसार-ए-ज़ात से निकलूँ तो तुझ से बात करूँ

राज कुमार क़ैस

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