खींच लाई है तिरे दश्त की वहशत वर्ना
कितने दरिया ही मिरी प्यास बुझाने आते
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(473) Peoples Rate This
यानी कोई कमी नहीं मुझ में
इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे
दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती
फूल खिलते हैं तालाब में तारा होता
सिर्फ़ बच्चे ही नहीं शोर मचाने आते
नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं
ज़ख़्म इस ज़ख़्म पे तहरीर किया जाएगा
मुझ में ख़ुश्बू बसी उसी की है
तुम्हारे साथ कई रंज बाँटने हैं हमें
हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे
कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ