तुम्हारे साथ कई रंज बाँटने हैं हमें
सो एक दिन के लिए ज़िंदगी से फ़ुर्सत लो
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(452) Peoples Rate This
नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं
या उन्हें आती नहीं बज़्म-ए-सुख़न-आराई
मुझ में ख़ुश्बू बसी उसी की है
दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती
मिरी जगह पे कोई और हो तो चीख़ उट्ठे
हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे
ज़ख़्म इस ज़ख़्म पे तहरीर किया जाएगा
कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ
तमाम शहर गिरफ़्तार है अज़िय्यत में
साथ रोने न सही गीत सुनाने आते