मिरी जगह पे कोई और हो तो चीख़ उट्ठे
मैं अपने आप से इतने सवाल करता हूँ
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इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे
ज़ख़्म इस ज़ख़्म पे तहरीर किया जाएगा
फूल खिलते हैं तालाब में तारा होता
यानी कोई कमी नहीं मुझ में
नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं
तुम्हारे साथ कई रंज बाँटने हैं हमें
दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती
साथ रोने न सही गीत सुनाने आते
कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ
थकन का बोझ बदन से उतारते हैं हम
मुझ में ख़ुश्बू बसी उसी की है