यानी कोई कमी नहीं मुझ में
यानी मुझ में कमी उसी की है
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मुझ में ख़ुश्बू बसी उसी की है
सिर्फ़ बच्चे ही नहीं शोर मचाने आते
दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती
साथ रोने न सही गीत सुनाने आते
खींच लाई है तिरे दश्त की वहशत वर्ना
मिरी जगह पे कोई और हो तो चीख़ उट्ठे
थकन का बोझ बदन से उतारते हैं हम
इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे
हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे
तमाम शहर गिरफ़्तार है अज़िय्यत में