या उन्हें आती नहीं बज़्म-ए-सुख़न-आराई
या हमें बज़्म के आदाब नहीं आते हैं
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हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे
थकन का बोझ बदन से उतारते हैं हम
यानी कोई कमी नहीं मुझ में
सिर्फ़ बच्चे ही नहीं शोर मचाने आते
फूल खिलते हैं तालाब में तारा होता
मिरी जगह पे कोई और हो तो चीख़ उट्ठे
साथ रोने न सही गीत सुनाने आते
इश्क़ था और अक़ीदत से मिला करते थे
तुम्हारे साथ कई रंज बाँटने हैं हमें
नींद आती है मगर ख़्वाब नहीं आते हैं
दश्त की प्यास किसी तौर बुझाई जाती