दश्त Poetry (page 14)

ये कौन आया शबिस्ताँ के ख़्वाब पहने हुए

साक़ी फ़ारुक़ी

पाँव मारा था पहाड़ों पे तो पानी निकला

साक़ी फ़ारुक़ी

मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वाला

साक़ी फ़ारुक़ी

ख़्वाब को दिन की शिकस्तों का मुदावा न समझ

साक़ी फ़ारुक़ी

जान प्यारी थी मगर जान से बे-ज़ारी थी

साक़ी फ़ारुक़ी

बाद-ए-निस्याँ है मिरा नाम बता दो कोई

साक़ी फ़ारुक़ी

अभी नज़र में ठहर ध्यान से उतर के न जा

साक़ी फ़ारुक़ी

समुंदर की ख़ुश्बू

समीना राजा

ज़माँ मकाँ से भी कुछ मावरा बनाने में

सालिम सलीम

बदन सिमटा हुआ और दश्त-ए-जाँ फैला हुआ है

सालिम सलीम

ज़मीं को सज्दा किया ख़ूँ से बा-वज़ू हो कर

सलीम शाहिद

वो ख़ूँ बहा कि शहर का सदक़ा उतर गया

सलीम शाहिद

उस को मिल कर देख शायद वो तिरा आईना हो

सलीम शाहिद

रास्ता चाहिए दरिया की फ़रावानी को

सलीम शाहिद

मिरी थकन मिरे क़स्द-ए-सफ़र से ज़ाहिर है

सलीम शाहिद

मत पूछ कि इस पैकर-ए-ख़ुश-रंग में क्या है

सलीम शाहिद

मंज़र मिरी आँखों में रहे दश्त-ए-सफ़र के

सलीम शाहिद

अब शहर की और दश्त की है एक कहानी

सलीम शाहिद

तिरी निगाह की जब से मुआ'विनत न रही

सलीम सरफ़राज़

रंग-ए-ख़ुलूस गंग-ओ-जमन में नहीं रहा

सलीम सरफ़राज़

अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते

सलीम सरफ़राज़

कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे

सलीम कौसर

सहमे नहीफ़ दरिया के धारे की बात कर

सलीम फ़िगार

तिरी निगाह की जब से मुआवनत न रही

सलीम फ़राज़

फ़स्ल-ए-जुनूँ में दामन-ओ-दिल चाक भी नहीं

सलीम फ़राज़

अच्छा था कोई ख़्वाब नज़र में न पालते

सलीम फ़राज़

अभी मौजूद थी लेकिन अभी गुम हो गई है

सलीम फ़राज़

आँख के कुंज में इक दश्त-ए-तमन्ना ले कर

सलीम बेताब

तर्क उन से रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात हो गई

सलीम अहमद

'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का

सलीम अहमद

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