दश्त Poetry (page 12)

वो एक ख़्वाब कि आँखों में जगमगा रहा है

शहबाज़ ख़्वाजा

किसी ने देख लिया था जो साथ चलते हुए

शहबाज़ ख़्वाजा

कब गवारा है मुझे और कहीं पर चमके

शहबाज़ ख़्वाजा

तस्ख़ीर-ए-फ़ितरत के बअ'द

शहाब जाफ़री

हयात में भी अजल का समाँ दिखाई दे

शहाब जाफ़री

बे-सर-ओ-सामाँ कुछ अपनी तब्अ से हैं घर में हम

शहाब जाफ़री

अब कहाँ ले के छुपें उर्यां बदन और तन जला

शहाब जाफ़री

जा-ब-जा दश्त में ख़ेमे हैं बगूले के खड़े

शाह नसीर

उठती घटा है किस तरह बोले वो ज़ुल्फ़ उठा कि यूँ

शाह नसीर

क्यूँ न कहें बशर को हम आतिश-ओ-आब ओ ख़ाक-ओ-बाद

शाह नसीर

दिल इश्क़-ए-ख़ुश-क़दाँ में जो ख़्वाहान-ए-नाला था

शाह नसीर

बा'द-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ

शाह नसीर

बदन-दरीदा-ओ-बे-बर्ग-ओ-बार होना भी

शाह हुसैन नहरी

मौसम-ए-गुल आ गया फिर दश्त-पैमाई रहे

शाग़िल क़ादरी

रंगों लफ़्ज़ों आवाज़ों से सारे रिश्ते टूट गए

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

लोग हैं मुंतज़िर-ए-नूर-ए-सहर मुद्दत से

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

हमारे पास था जो कुछ लुटा के बैठ रहे

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

हम ज़मीन-ज़ादों को आसमाँ बना जाना

शफ़ीक़ सलीमी

ये क्या कि मेरे यक़ीं में ज़रा गुमाँ भी है

शफ़क़ सुपुरी

मौज-दर-मौज सफ़ीनों से है धारा रौशन

शफ़क़ सुपुरी

मौज-दर-मौज सफ़ीनों से है धारा रौशन

शफ़क़ सुपुरी

मैं हम-नफ़स हूँ मुझे राज़-दाँ भी करना था

शफ़क़ सुपुरी

चमन की ख़ाक पे मौज-ए-बला ने रक़्स किया

शफ़क़ सुपुरी

किसी की मुंतज़िर अब दिल की रह-गुज़ार नहीं

शबनम वहीद

ज़ौक़-ए-नज़र को इज़्न-ए-नज़ारा न मिल सका

शबनम शकील

सफ़र की आख़िरी मंज़िल के राहबर हम हैं

शबनम शकील

हम तो गवाह हैं कि ग़लत था लिखा गया

शबनम शकील

संग-ए-चेहरा-नुमा तो मैं भी हूँ

शबनम रूमानी

जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी

शब्बीर शाहिद

जब ख़िलाफ़-ए-मस्लहत जीने की नौबत आई थी

शब्बीर शाहिद

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