दश्त Poetry (page 20)

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा

किरन किरन के दरख़्शंदा बाब मेरे हैं

हुसैन सहर

इतनी सी इस जहाँ की हक़ीक़त है और बस

हुसैन सहर

वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है

हुमैरा राहत

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

हिमायत अली शाएर

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

हिमायत अली शाएर

रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश

हिमायत अली शाएर

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

हिमायत अली शाएर

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

हिमायत अली शाएर

दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो

हिमायत अली शाएर

आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना

हिमायत अली शाएर

कभी तो सेहन-ए-अना से निकले कहीं पे दश्त-ए-मलाल आया

हिलाल फ़रीद

हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला

हिलाल फ़रीद

है जब तक दश्त-पैमाई सलामत

हिजाब अब्बासी

है जब तक दश्त-पैमाई सलामत

हिजाब अब्बासी

सर-ता-ब-क़दम ख़ून का जब ग़ाज़ा लगा है

हज़ीं लुधियानवी

मिरे रियाज़ का आख़िर असर दिखाई दिया

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई, जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

इस का नहीं है ग़म कोई जाँ से अगर गुज़र गए

हज़ीं लुधियानवी

मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था

हयात लखनवी

ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके

हातिम अली मेहर

पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया

हातिम अली मेहर

गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही

हातिम अली मेहर

गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है

हातिम अली मेहर

दरिया की तरफ़ देख लो इक बार मिरे यार

हस्सान अहमद आवान

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