दश्त Poetry (page 21)

ख़ुशा वो बाग़ महकती हो जिस में बू तेरी

हसरत शरवानी

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं

हसरत मोहानी

जान कर कहता है हम से अपने जाने की ख़बर

हसरत अज़ीमाबादी

दामन है मेरा दश्त का दामान दूसरा

हसरत अज़ीमाबादी

दानाइयाँ अटक गईं लफ़्ज़ों के जाल में

हसनैन आक़िब

बदन से रूह हम-आग़ोश होने वाली थी

हाशिम रज़ा जलालपुरी

कभी शाम-ए-हिज्र गुज़ारते कभी ज़ुल्फ़-ए-यार सँवारते

हसन रिज़वी

जो मेरे दश्त-ए-जुनूँ में था फ़र्क़-ए-रू-ए-बहार

हसन नईम

यही तो ग़म है वो शाइ'र न वो सियाना था

हसन नईम

वो भी कहता था कि उस ग़म का मुदावा ही नहीं

हसन नईम

उसी ख़ुश-नवा में हैं सब हुनर मुझे पहले था न क़यास भी

हसन नईम

रश्क अपनों को यही है हम ने जो चाहा मिला

हसन नईम

माल-ओ-मता-ए-दश्त सराबों को दे दिया

हसन नईम

मैं किस वरक़ को छुपाऊँ दिखाऊँ कौन सा बाब

हसन नईम

मैं ग़ज़ल का हर्फ़-ए-इम्काँ मसनवी का ख़्वाब हूँ

हसन नईम

कू-ए-रुसवाई से उठ कर दार तक तन्हा गया

हसन नईम

बयान-ए-शौक़ बना हर्फ़-ए-इज़्तिराब बना

हसन नईम

इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त का

हसन अज़ीज़

भटक रहा हूँ मैं इस दश्त-ए-संग में कब से

हसन अज़ीज़

शुआ-ए-ज़र न मिली रंग-ए-शाइराना मिला

हसन अज़ीज़

जो नक़्श-ए-बर्ग-ए-करम डाल डाल है उस का

हसन अज़ीज़

इक क़िस्सा-ए-तवील है अफ़्साना दश्त का

हसन अज़ीज़

देखूँ वो करती है अब के अलम-आराई कि मैं

हसन अज़ीज़

फाँदती फिरती हैं एहसास के जंगल रूहें

हसन अख्तर जलील

ख़ला के दश्त में ये तुर्फ़ा माजरा भी है

हसन अख्तर जलील

कर के संग-ए-ग़म-ए-हस्ती के हवाले मुझ को

हसन अख्तर जलील

आई पतझड़ गिरे फ़स्ल-ए-गुल के निशाँ रात-भर में

हसन अख्तर जलील

माज़ी में रह जाने वाली आँखें

हसन अकबर कमाल

हो तेरी याद का दिल में गुज़र आहिस्ता आहिस्ता

हसन अकबर कमाल

दुनिया में कितने रंग नज़र आएँगे नए

हसन अकबर कमाल

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