दश्त Poetry (page 23)

याद करने का तुम्हें कोई इरादा भी न था

गुलनार आफ़रीन

शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है

गुलनार आफ़रीन

हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए

गुलनार आफ़रीन

वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था

गुहर खैराबादी

मैं ग़र्क़ वहाँ प्यास के पैकर की तरह था

गुहर खैराबादी

स्वाँग अब तर्क-ए-मोहब्बत का रचाया जाए

गोपाल मित्तल

मिरे पर न बाँधो

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

ठहर ठहर के मिरा इंतिज़ार करता चल

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आँख से बिछड़े काजल को तहरीर बनाने वाले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

क्या आ के जहाँ में कर गए हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नशात-ए-फ़त्ह से तो दामन-ए-दिल भर नहीं पाए

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरी विरासत में जो भी कुछ है वो सब इसी दहर के लिए है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

हुआ रौशन दम-ए-ख़ुर्शीद से फिर रंग पानी का

ग़ुलाम हुसैन साजिद

कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया

ग़ुफ़रान अमजद

कब से बंजर थी नज़र ख़्वाब तो आया

ग़ुफ़रान अमजद

अजब था ज़ोम कि बज़्म-ए-अज़ा सजाएँगे

ग़ुफ़रान अमजद

बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है

ग़ज़नफ़र हाशमी

ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ

ग़ज़नफ़र

हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए

ग़यास अंजुम

बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं

ग़नी एजाज़

दर्द जब दस्तरस-ए-चारागराँ से निकला

ग़ालिब अयाज़

सदा ब-सहरा

ग़ालिब अहमद

है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब

ग़ालिब

अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग

ग़ालिब

वुसअत-ए-सई-ए-करम देख कि सर-ता-सर-ए-ख़ाक

ग़ालिब

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