रखता नहीं है दश्त सरोकार आब से
बहलाए जाते हैं यहाँ प्यासे सराब से
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देखने सुनने का मज़ा जब है
कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए
मुझे ग़ुबार उड़ाता हुआ सवार लगा
बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और
वही साहिल वही मंजधार मुझ को
कैसा इंसाँ तरस रहा है जीने को
बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से
कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा
झलकती है मिरी आँखों में बेदारी सी कोई
मिरी सिफ़ात का जब उस ने ए'तिराफ़ किया
नहीं है बहर-ओ-बर में ऐसा मेरे यार कोई