फिर किसी की याद ने तड़पा दिया
फिर कलेजा थाम कर हम रह गए
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शिकवा-ए-हिज्र पे सर काट के फ़रमाते हैं
मर के टूटा है कहीं सिलसिला-ए-क़ैद-ए-हयात
रूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर
जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर
ऐ बे-ख़ुदी ठहर कि बहुत दिन गुज़र गए
आँख उठाई ही थी कि खाई चोट
मौत आने तक न आए अब जो आए हो तो हाए
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
यारब नवा-ए-दिल से ये कान आश्ना से हैं
हम हैं उस के ख़याल की तस्वीर
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
कश्ती-ए-ए'तिबार तोड़ के देख