यारब नवा-ए-दिल से ये कान आश्ना से हैं
आवाज़ आ ही है ये कब की सुनी हुई
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आह से या आह की तासीर से
वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला
हर घड़ी इंक़लाब में गुज़री
वो जी गया जो इश्क़ में जी से गुज़र गया
ख़ुदा असर से बचाए इस आस्ताने को
दैर में या हरम में गुज़रेगी
कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र
रूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर
बहला न दिल न तीरगी-ए-शाम-ए-ग़म गई
ख़ुशी से रंज का बदला यहाँ नहीं मिलता
हासिल-ए-इल्म-ए-बशर जहल का इरफ़ाँ होना
दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया