या तिरे मुहताज हैं ऐ ख़ून-ए-दिल
या इन्हीं आँखों से दरिया भर गए
Gulzar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(941) Peoples Rate This
ख़ुदा असर से बचाए इस आस्ताने को
दैर में या हरम में गुज़रेगी
रोने के भी आदाब हुआ करते हैं 'फ़ानी'
ऐ अजल ऐ जान-ए-'फ़ानी' तू ने ये क्या कर दिया
ले ए'तिबार-ए-वादा-ए-फ़र्दा नहीं रहा
मेरे लब पर कोई दुआ ही नहीं
क़सम न खाओ तग़ाफ़ुल से बाज़ आने की
यूँ चुराईं उस ने आँखें सादगी तो देखिए
जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर
कितनों को जिगर का ज़ख़्म सीते देखा
शबाब-ए-होश कि फ़िल-जुमला यादगार हुई
ज़बाँ मुद्दआ-आश्ना चाहता हूँ