कितनों को जिगर का ज़ख़्म सीते देखा
देखा जिसे ख़ून-ए-दिल ही पीते देखा
अब तक रोते थे मरने वालों को और अब
हम रो दिए जब किसी को जीते देखा
Gulzar
Rahat Indori
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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या-रब तिरी रहमत से मायूस नहीं 'फ़ानी'
दुनिया मेरी बला जाने महँगी है या सस्ती है
ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तिरे दीवाने का
क्यूँ न नैरंग-ए-जुनूँ पर कोई क़ुर्बां हो जाए
ज़िंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं
जब पुर्सिश-ए-हाल वो फ़रमाते हैं जानिए क्या हो जाता है
क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है
या कहते थे कुछ कहते जब उस ने कहा कहिए
बीमार तिरे जी से गुज़र जाएँ तो अच्छा
क्या कहिए कि बेदाद है तेरी बेदाद
इक फ़साना सुन गए इक कह गए
रूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर